भारत में दिखा रमजान का चांद, 2 मार्च को पहला रोजा!

रमजान इस्लामी कैलेंडर का नौवा महीना होता है जिसका खास महत्व माना जाता है। इस पूरी महीने मुस्लिम लोग रोजा रखते हैं और अपना ज्यादा से ज्यादा समय खुदा की इबादत में बिताते हैं। रमजान की शुरुआत अर्धचंद्राकार चांद दिखने पर होती है। सऊदी अरब में रमजान का चांद आज दिख गया है। भारत में 1 मार्च को चांद दिख गया है। ऐसे में यहां 2 मार्च से रमजान महीने की शुरुआत होगी।
रमजान मुसलमानों के लिए बेहद खास है। इस दौरान मुस्लिम लोग सुबह से शाम तक उपवास रखते हैं जिसमें वे भोजन, पेय और अन्य शारीरिक जरूरतों से परहेज करते हैं। रोजा में सुबह से पहले के भोजन को सहरी के रूप में जाना जाता है तो वहीं सूर्यास्त के समय उपवास तोड़ने के लिए भोजन को इफ्तार कहा जाता है। रोजा रखने के अलावा इस महीने में प्रार्थना और कुरान का पाठ करने का भी विशेष महत्व माना जाता है। महीने के अंत में ईद-उल-फ़ितर का त्योहार मनाया जाता है।
रमजान में तरावीह की नमाज
रमजान में पांच वक्त की नमाज के अलावा एक खास नमाज अदा की जाती है, जिसे तरावीह की नमाज कहा जाता है। पूरे माह-ए-रमजान में तरावीह की नमाज पढ़ी जाती है। हालांकि, तरावीह की नमाज किसी भी मुसलमान पर फर्ज नहीं है। तरावीह की नमाज इस्लाम में सुन्नत-ए-मुअक्किदा मानी गई है, यानी इसे पढ़ने जरूरी भी नहीं है और न पढ़ने पर कोई गुनाह भी नहीं है। हालांकि, तरावीह की नमाज पढ़ने पर ज्यादा सवाब मिलता है।
रमजान के चांद का दीदार होने के साथ ही तमाम मस्जिदों में तरावीह पढ़ी जाती है। तरावीह की नमाज ईशा की नमाज के बाद अदा की जाती है और जरूरी नहीं कि तरावीह की नमाज मस्जिद में जमात के साथ ही पढ़ी जाए। इसे आप अपने घर पर अकेले में भी पढ़ सकते हैं।
माह-ए-रमजान की अहमियत
मुसलमानों के लिए रमजान का महीना इसलिए भी ज्यादा अहमियत रखता है, क्योंकि इसमें इस्लाम धर्म की सबसे पाक किताब कुरआन नाजिल हुई थी यानी उतारी गई थी। रमजान में रोजे रखना इस्लाम का बुनियादी हिस्सा है। हालांकि, कुछ हालातों में रोजा न रखने की छूट दी गई है। नाबाबिग बच्चे, प्रेग्नेंट महिला, बुजुर्ग, बीमारी और पीरियड्स की हालत में रोजा न रखने की इजाजत है।
